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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस

इस राज्य में किसान ड्रोन किराये पर लेकर करेंगे कृषि में छिड़काव

इस राज्य में किसान ड्रोन किराये पर लेकर करेंगे कृषि में छिड़काव

भारत के कृषि क्षेत्र में ड्रोन का उपयोग और उस पर कार्य में बड़ी तीव्रता से वृद्धि हो रही है। वहीं, सरकार द्वारा भी ड्रोन टेक्नोलॉजी (Drone Technology) को प्रोत्साहन दिया जा रहा है, विशेष रूप से खेती के अंतर्गत। 

क्योंकि, यह एक नवीन एवं आधुनिक तकनीक होने के साथ मंहगी भी है। इस वजह से प्रत्येक किसान हेतु इसकी सुविधा प्राप्त करनी सुगम नहीं है। इस परिस्थिति में राजस्थान राज्य सरकार द्वारा एक नई योजना जारी की गयी है। 

इस योजना के अंतर्गत ड्रोन को किराये पर उपलब्ध कराया जायेगा। ऐसे किसान जो ड्रोन का उपयोग करने के लिए लाखों रुपये का खर्च वहन नहीं कर सकते हैं। 

वह कुछ रुपये में ड्रोन किराये पर प्राप्त करके अपने कृषि संबंधित बड़े-बड़े कार्य आसानी से कर सकते हैं। किसान समय की कम बर्बादी के साथ कम खर्च में उर्वरकों का छिड़काव एवं फसलों की देखरेख का भी कार्य पूर्ण कर सकते हैं। 

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राजस्थान सरकार की योजना के अनुरूप, आगामी दो वर्षों के अंतर्गत किसानों हेतु सरकार ड्रोन किराये पर उपलब्ध कराएगी। जिसके लिए सरकार ने 1500 ड्रोन स्थापित किए हैं। 

राजस्थान के प्रमुख सचिव, कृषि एवं बागवानी, दिनेश कुमार ने 'PTI' का कहना है, कि कृषि क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) एवं ड्रोन का उपयोग तीव्रता से वृद्धि कर रहा है। 

पूरे विश्व सहित राजस्थान राज्य में भी यह प्रचलन तीव्रता से अग्रसर हो रहा है। राजस्थान सरकार किसानों की आय एवं पैदावार को बढ़ाने हेतु टेक्नोलॉजी को प्रोत्साहित कर रही है। 

राजस्थान के प्रमुख सचिव दिनेश कुमार ने बताया, प्रदेश के प्रगतिशील किसान कृषि कार्यों हेतु ड्रोन का इस्तेमाल कर रहे हैं। भविष्य में कृषि के अंतर्गत ड्रोन की मांग एवं इसके उपयोग में बड़े पैमाने पर वृध्दि सामने आएगी। 

इस बात को ध्यान में रखते हुए सरकार ने कृषि कर रहे कृषकों को किराये के रूप में ड्रोन उपलब्ध कराने की योजना तैयार करली है। यह योजना किसानों को लाभ दिलाने का कार्य करेगी। जिनकी आय कम अथवा सीमित है। 

साथ ही जो लोग ड्रोन का व्यय नहीं वहन कर सकते। परंपरागत कृषि में कीटनाशकों एवं उर्वरकों का छिड़काव नहीं तो अधिकाँश किसान यह कार्य हाथ के द्वारा किया जाता है। 

ट्रैक्टर पर स्थापित स्प्रे से इसमें पानी की बर्बादी ज्यादा होती है एवं काफी समय भी ख़राब हो जाता है। छिड़काव का कुछ भाग फसलों की जगह अन्य भी चला जाता है। 

यदि किसान इसी कार्य को ड्रोन के माध्यम से करें, तब वह इस तरह की बर्बादी को रोक सकते हैं। ड्रोन के जरिए किसान पूर्ण बेहतरी सहित कम पानी एवं कम खाद में बेहद उम्दा छिड़काव करने में सक्षम है। 

एक कृषि अधिकारी के अनुसार, ड्रोन की सहायता से 70 से 80 फीसद तक जल की खपत कम कर सकते हैं। कृषि आयुक्त काना राम ने बताया हैं, ड्रोन के माध्यम से यह जान सकते हैं, कि फसल को किस तरह के पोषक तत्व की जरूरत है। 

किसानों को उसी के अनुसार से ड्रोन के जरिये फसल पर उस चीज का छिड़काव कर कर सकते हैं। किसान ड्रोन की सहायता से फसल सेहत की मॉनिटरिंग, पेस्ट एनालिसिस, फसल में सिंचाई की मॉनिटरिंग, फसलों में हुई हानि का अंदाजा लगाया जा सकता है। 

साथ ही, ड्रोन की मदद से टिड्डियों के हमले पर काबू और उर्वरकों के छिड़काव की तरह कार्य किए जा सकते हैं। विगत सप्ताह ड्रोन का कार्य देखने हेतु जोबनेर के जोशीवास गांव में एक प्रदर्शन किया गया है। 

इसके अंतर्गत कृषि विभाग के अधिकारियों की भी मौजूदगी रही। इसी दौरान कृषि मंत्री लालचंद कटारिया जी भी उपस्थित रहे थे। 

कृषि विशेषज्ञ शिवपाल सिंह राजावत का कहना है कि फसलों की देखरेख, देखभाव एवं उर्वरकों का छिड़काव बेहद मुख्य कार्य है। 

ड्रोन के उपयोग से यह कार्य समय की बर्बादी और खर्च को कम किया जा सकता है। इस प्रकार आगामी समय में ड्रोन का इस्तेमाल में काफी वृद्धि देखि गई है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से सफल हो रही है भारतीय कृषि : नई उन्नति की राह बढ़ता किसान

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से सफल हो रही है भारतीय कृषि : नई उन्नति की राह बढ़ता किसान

आधुनिकता की राह पर चल रही नई विकसित दुनिया में भी भारत की कुल जनसंख्या का लगभग 58% हिस्सा, कृषि क्षेत्र को जीवन यापन के लिए प्राथमिक स्रोत के रूप में इस्तेमाल करता है। आर्थिक सर्वेक्षण 2021 (Economic survey 2021-22) के अनुसार भारतीय कृषि ने पिछले 5 सालों में वैज्ञानिक पद्धति का इस्तेमाल कर सीमित विकास प्रदर्शित किया है। हालांकि, आने वाले वर्षों में कृत्रिम बुद्धिमता (artificial intelligence), मशीन लर्निंग (Machine learning) और डाटा एनालिटिक्स (Data analytics) की मदद से भारतीय कृषि क्षेत्र को मजबूत बनाने की सरकार की प्रतिबद्धता, लोगों के लिए सीमित मात्रा में भोजन उपलब्ध करवाने के अलावा किसानों की आय को दोगुना करने के लिए उठाया गया एक सुदृढ़ कदम साबित हो सकता है। बढ़ती वैश्विक जनसंख्या के लिए सही समय पर भोजन उपलब्ध करवाने के लिए कृत्रिम बुद्धिमता यानी कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का इस्तेमाल कर कई देशों के कृषि वैज्ञानिक, कृषि क्षेत्र में नए आविष्कार कर रहे हैं और इससे बढ़ी उपज की मदद से किसान भाई भी काफी मुनाफा कमा रहे हैं।

क्या है कृत्रिम बुद्धिमता (Artificial Intelligence) ?

कृत्रिम बुद्धिमता मानव मस्तिष्क की तरह ही काम करने वाली एक नई तकनीक है, जोकि इंसानों के दिमाग के द्वारा किए जाने वाले काम की हूबहू नकल कर सकती हैं और जिस प्रकार मनुष्य किसी काम को करते हैं, वैसे ही कंप्यूटर और रोबोटिक्स की मदद से उस कार्य को संपन्न किया जा सकता है। कृत्रिम बुद्धिमता को सेल्फ ड्राइविंग कार के उदाहरण के माध्यम से समझा जा सकता है, वर्तमान में कई डिजिटल ऑटोमोबाइल कंपनियां कृत्रिम बुद्धिमता की मदद से बिना ड्राइवर के चलने वाली गाड़ियां बनाने में सफल रही है।


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परंपरागत तकनीक से कृषि करने वाले किसानों के सामने आने वाली समस्याएं :

पुराने समय से चली आ रही कृषि की परंपरागत तकनीक अब किसानों को पूर्व में होने वाले उत्पादन की तुलना में कम उत्पादन प्रदान करने के अलावा अब खेती करना किसान भाइयों के लिए आर्थिक रूप से काफी बोझिल साबित हो रहा है। पर्यावरण में हुए परिवर्तन की वजह से बारिश और तापमान में आए अंतर और नमी में आई कमी या अधिकता की वजह से कृषि की पूरी चक्र प्रभावित हो रही है। इसके अलावा बढ़ते औद्योगीकरण की वजह से हुई वनों की कटाई के कारण प्रदूषण में काफी बढ़ोतरी हुई है, जो किसानों की मिट्टी और बीजों की उपज को कम करने के साथ ही उनके उत्पाद की गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है। इसके अलावा फ़र्टिलाइज़र पर मिलने वाली सब्सिडी का दुरुपयोग होने की वजह से, बदलते वक्त के साथ भारत की मृदा में पाए जाने वाले तीन मुख्य पोषक तत्व, नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम की मात्रा में भी कमी देखी गई है, जोकि फसल के उत्पाद को कम करने के अलावा किसानों की आय को भी कम कर रहे हैं। कई विकसित देशों के द्वारा अपनाए गए नए आविष्कारों की वजह से उनके यहां प्रति क्षेत्र में होने वाली कृषि उत्पादकता में बढ़ोतरी हुई है, जिससे विश्व के कुल निर्यात में भारतीय कृषि का निर्यात निरंतर घट रहा है।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता का भारतीय कृषि में इस्तेमाल :

पिछले कुछ वर्षों में डिजिटल आविष्कारों की मदद से कृत्रिम बुद्धिमत्ता का इस्तेमाल बढ़ा है। अब बेहतर गुणवत्ता के उत्पाद प्राप्त होने के अलावा, कीटनाशकों पर बेहतर नियंत्रण और मिट्टी की गुणवत्ता की जांच के साथ ही किसी भी फसल के उत्पादन के लिए आवश्यक पारिस्थितिक आवश्यकताओं की जानकारी जैसे फायदों के साथ ही, खेत के लिए तैयार किए गए डाटा का एक जगह पर संकलन, किसान भाइयों पर आने वाले दबाव को कम करके, भोजन की सप्लाई चैन को सुचारू रूप से बनाए रखने में मददगार साबित हो रहा है।
  • मौसम / तापमान / बुवाई के लिए सही समय की जानकारी :

अलग-अलग फसल के लिए आवश्यक पर्यावरणीय परिस्थितियां एक समान रहती है, लेकिन पर्यावरण में आए परिवर्तन की वजह से किसान भाइयों को किसी भी बीज को उगाने के लिए सही समय को पहचानना काफी मुश्किल हो रहा है।

इसी क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमता का इस्तेमाल कर अब भारतीय कृषि से जुड़े किसानों के लिए मौसम विभाग के द्वारा पर्याप्त डाटा उपलब्ध करवाया जा रहा है और अब इस डाटा के आधार पर किसान भाई बीज की बुवाई का सही समय का निर्धारण कर सकते हैं, जिससे बेहतर उत्पाद प्राप्त होने की संभावनाएं भी बढ़ जाती है।

  • ड्रोन की मदद से फसल की सम्पूर्ण जानकारी :

कृषि क्षेत्र में ड्रोन तकनीक का इस्तेमाल निरंतर बढ़ता जा रहा है, हाल ही में भारत सरकार के द्वारा किए गए प्रयासों की मदद से अब किसान भाई सब्सिडी पर खेती में इस्तेमाल के लिए ड्रोन खरीद सकते हैं।

इस प्रकार के कृषि ड्रोन का इस्तेमाल फसल की वृद्धि दर को जांचने के अलावा कीटनाशक के छिड़काव और सीमित मात्रा में उर्वरकों के इस्तेमाल के लिए किया जा सकता है।

इसके अलावा कृषि क्षेत्र से जुड़ी कई स्टार्टअप कंपनियां अब ड्रोन की मदद से किसी भी खेत से प्राप्त होने वाले उत्पाद का आकलन करने में भी सफल हो रही हैं और फसल की वृद्धि दर को डाटा के रूप में इस्तेमाल करते हुए किसानों को खेत से प्राप्त होने वाले कुल उत्पाद की जानकारी पहले ही दे दी जाती है।

नई तकनीकों से लैस कई ड्रोन अब किसानों की फसल में लगे अलग-अलग प्रकार के कीट की तस्वीर खींच कर, उन्हें वैज्ञानिकों तक पहुंचा रही है और डिजिटल माध्यमों से ही किसानों को इस प्रकार के कीटनाशकों से फसल को बचाने के उपाय भी सुझा रही है।



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  • कृषि रोबोटिक्स :

कृत्रिम बुद्धिमत्ता क्षेत्र में काम कर रही कई स्टार्टअप कंपनियां अब नए प्रकार के रोबोट बनाने की तरफ अग्रसर है, जो खेत में कई प्रकार के काम कर सकता है। विकसित देशों के किसान भाई इस प्रकार के रोबोट का इस्तेमाल करना शुरू भी कर चुके हैं।

इस प्रकार की कृषि रोबोटिक तकनीक की मदद से अब खेत में कीटनाशक के छिड़काव के अलावा फसल की कटाई और बुवाई करने के लिए इंसानों की जगह मशीनों का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह रोबोट आसानी से खेत में घूमते हुए फसल की गुणवत्ता की जांच कर सकते हैं और फसल के किसी भी हिस्से में लगे कीट को डिजिटल तकनीक से स्कैन करके उसकी पूरी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

पिछले कुछ समय से कृषि क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों की बढ़ती मांग की वजह से अब कृषि क्षेत्र में इस्तेमाल होने वाले रोबोट को एक विकल्प के रूप में देखा किया जा रहा है।

  • मृदा और फसल की गुणवत्ता मॉनिटरिंग :

यह बात तो सभी किसान भाई जानते ही हैं कि बीज की बेहतर गुणवत्ता और पर्याप्त पोषक तत्वों वाली बेहतर मृदा ही फसल उत्पादन में अच्छा योगदान कर सकती है। अब कृत्रिम बुद्धिमता की मदद से मृदा की गुणवत्ता की जांच घर बैठे ही किया जा सकता है।

हाल ही में जर्मनी की एक स्टार्टअप कंपनी ने कृत्रिम बुद्धिमता पर आधारित एक एप्लीकेशन बनाई है जोकि मृदा में पाए जाने वाले पोषक तत्वों की मात्रा को किसान भाइयों के मोबाइल फोन में डाटा के रूप में उपलब्ध करवा देती है और उन्हें प्रति एकड़ क्षेत्र में इस्तेमाल होने वाले उर्वरकों की मात्रा के बारे में भी जानकारी प्राप्त करवा रही है। इससे उर्वरकों का दुरुपयोग कम होने के साथ ही बेहतर उत्पादन प्राप्त होने की संभावनाएं बढ़ जाएगी।

इसी एप्लीकेशन की मदद से अब किसान भाई अपने फोन से ही किसी भी छोटी पौध की तस्वीर खींचकर कृषि वैज्ञानिकों तक पहुंचा सकते हैं, जो कि उन्हें फसल में लगी बीमारियों की जानकारी देने के साथ ही उपचार भी उपलब्ध करवाते हैं।

कृषि क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमता इस्तेमाल को सुदृढ़ करने के लिए किए गए सरकारी प्रयास :

भारत सरकार के द्वारा खेती किसानी से जुड़े लोगों के लिए ब्लॉकचेन तकनीक (Blockchain Technique) पर आधारित मोबाइल एप्लीकेशन का इस्तेमाल कर इंटरनेट ऑफ थिंग्स (Internet of Things) की मदद व आधुनिक डिजिटल माध्यमों के सहयोग से कई सरकारी प्रयास किए गए हैं, जो कि निम्न प्रकार है :
  • किसान सुविधा मोबाइल एप्लीकेशन :

इस मोबाइल एप्लीकेशन की मदद से किसानों को भविष्य में समय में होने वाले मौसम की जानकारी के साथ ही फसल और उर्वरक की बाजार कीमत की जानकारी दी जाती है। इसके अलावा फसल की छोटे पौध के बेहतर वृद्धि के लिए बताए गए कुछ उपाय शामिल किए गए हैं।

इन सुविधाओं के साथ ही खेती में इस्तेमाल आने वाली मशीनों और मौसम से होने वाले नुकसान की घटनाओं की जानकारी भी अलर्ट के माध्यम से दी जाती है।

सोयल हेल्थ कार्ड और कोल्ड स्टोरेज की कुछ महत्वपूर्ण जानकारी के अलावा राज्य सरकार और केंद्र सरकार की कृषि क्षेत्र से जुड़ी लैब की लोकेशन भी उपलब्ध करवाई जाती है।

  • एम किसान पोर्टल (M-KISAN Portal) :

इस पोर्टल पर किसान भाइयों को SMS की मदद से अलग-अलग फसलों से जुड़े डाटा को भेजा जाता है और किसानों को किसी भी फसल के बीज की बुवाई का सही समय भी बताया जाता है।

अलग-अलग लोकेशन और मौसम की वर्तमान स्थिति को ध्यान रखते हुए डाटा को अपडेट कर किसान भाइयों के मोबाइल फोन तक पहुंचाया जाता है।

  • किसान ड्रोन :

 कृषि क्षेत्र में इस्तेमाल हो रहे ड्रोन के बेहतर उपयोग के लिए सरकार के द्वारा कई प्रकार की सब्सिडी उपलब्ध करवाई जा रही है।

इसके अलावा 'किसान ड्रोन मित्र' जैसे सरकारी सेवकों के माध्यम से डिजिटल माध्यमों से अनजान किसान भाइयों के लिए ट्रेनिंग भी उपलब्ध करवाई जा रही है।

इन सभी सरकारी योगदानों के अलावा भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के द्वारा कई अलग प्रकार की मोबाइल एप तैयार की गई है जो कि पोस्ट हार्वेस्ट से जुड़ी नई तकनीक और किसी नए उत्पाद से जुड़ी जानकारियां किसानों तक पहुंचाती है।


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वर्तमान में भारत सरकार 700 से अधिक कृषि विज्ञान केंद्र और 600 से अधिक कृषि से जुड़ी मैनेजमेंट संस्थानों की मदद से ग्रास रूट स्तर पर जाकर किसानों के मध्य कृत्रिम बुद्धिमता के इस्तेमाल को बढ़ावा देने को लेकर प्रयासरत है। आशा करते हैं कि हमारे किसान भाइयों को Merikheti.com के माध्यम से कृत्रिम बुद्धिमता और इसके कृषि क्षेत्र में होने वाले प्रयोगों के संबंध में संपूर्ण जानकारियां मिल गई होगी। भविष्य में आप भी ऐसे ही नई तकनीक का इस्तेमाल कर उत्पादन को बेहतर बनाने के डिजिटल तकनीक के इस दौर में नए आविष्कारों की मदद से बेहतर मुनाफा कमा पाएंगे।
स्मार्ट कृषि प्रणाली : किसानों की भविष्यकारी नीति और चुनौतियां

स्मार्ट कृषि प्रणाली : किसानों की भविष्यकारी नीति और चुनौतियां

बदलते वैश्विक परिदृश्य में अब भारत सरकार भी डिजिटलीकरण के माध्यम से संचालित कृषि नीतियों को प्राथमिक उद्देश्य में शामिल करने के लिए प्रयास कर रही है। 

 साल 2022-23 के बजट में सरकार ने नई कृषि तकनीकों को डिजिटलीकरण के क्षेत्र में काम करने वाली स्टार्टअप तथा किसान उत्पादक संस्थान (Food Processing Organisation) के साथ मिलकर स्मार्ट कृषि की राह पर चलने का फैसला किया है। कोविड-19 जैसी महामारी और कई प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं से पैदा हुए खाद्य संकट को कम करने में भी स्मार्ट खेती का महत्वपूर्ण योगदान देखने को मिला है।

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क्या होती है स्मार्ट कृषि ?

किसी भी खेती प्रणाली में अपशिष्ट उत्पादों की मात्रा को कम करते हुए, खेत से प्राप्त होने वाली उत्पादकता में वृद्धि करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक को ही स्मार्ट कृषि (Smart Farming) कहा जा सकता है। स्मार्ट कृषि एक बड़े परिदृश्य को परिभाषित करती है, इसके तहत बेहतरीन तकनीक की रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट (remote sensing satellite) और दूसरे वैज्ञानिक उपकरणों की मदद से संसाधनों के कुशल प्रबंधन को भी शामिल किया जा सकता है।

साल 2015 से विश्व के लगभग सभी देश समुचित विकास (Sustainable development) की राह पर चलते हुए पर्यावरण की गुणवत्ता को कम से कम नुकसान पहुंचाते हुए विश्व में खाद्य संकट के निदान के लिए प्रयासरत हैं। विज्ञान की नई तकनीक जैसे रिमोट सेंसिंग, रोबोटिक्स तथा बिग डाटा एनालिटिक्स (Big Data Analytics) और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के अलावा इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IOT) जैसी कई प्रौद्योगिकियों परंपरागत खेती को स्मार्ट कृषि में बदल सकती है।

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स्मार्ट कृषि से किसानों को होने वाले फायदे :

किसी भी नई प्रौद्योगिकी और उत्पाद को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही पक्षों से सोचा जाना चाहिए। स्मार्ट खेती के लिए भी नई वैज्ञानिक तकनीक प्रभावी नीति निर्माण कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, जैसे कि :-

  • कृषि प्रणाली की दक्षता में बढ़ोतरी :-

किसी भी किसान के लिए खेत से अधिक उपज प्राप्त करना सपने के सच होने जैसा होता है। स्मार्ट कृषि उत्पादकता बढ़ाने के साथ ही कृषि प्रणाली की दक्षता को सुदृढ़ करने में सक्षम है।

इसके लिए विभिन्न तरीके के उत्पाद, जैसे कि 'किसान ड्रोन'  (Kisan Drone) का उपयोग पानी में घुलनशील उर्वरकों और पोषक तत्वों के छिड़काव के अलावा कीटनाशक के सीमित इस्तेमाल के लिए भी किया जा सकता है।

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श्रम संकट को ध्यान में रखते हुए किसान ड्रोन शारीरिक श्रम के लिए एक विकल्प के रूप में उपलब्ध हुआ है।

  • भूमि रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण :

वर्तमान में ब्लॉकचेन तकनीक (Blockchain Technique) की मदद से विकसित देशों में सेंसर आधारित उपकरणों का सहयोग लेकर भूमि से जुड़ी संपूर्ण जानकारी को डिजिटल माध्यमों की मदद से उपलब्ध करवाया जा रहा है।

नई तकनीकों के प्रसार की वजह से किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी और अलग-अलग योजनाओं के लिए लाभान्वित होने वाले व्यक्तियों की संपूर्ण जानकारी इकट्ठा करना काफी आसान हो गया है, इस पारदर्शिता की मदद से सही लाभार्थी लोगों तक आर्थिक मदद को आसानी से पहुंचा जा सकता है।

  • कम्युनिटी विकास पर फोकस :

छोटे किसानों के लिए स्मार्ट कृषि का इस्तेमाल करना काफी मुश्किल हो जाता है, वर्तमान में स्मार्ट कृषि से अलग अलग क्षेत्रों के किसानों के मध्य जागरूकता बढ़ाने और भाईचारे का स्वभाव भी पैदा किया जा रहा है।

साल 2018 में बेंगलुरु की एक स्टार्टअप कंपनी वी-ड्रोन ने आसपास के एरिया से छोटे किसानों को एक पैनल के जरिए जोड़ने का प्रयास किया और ऐसे किसानों के खेत की रोबोटिक्स और मेपिंग तकनीक की मदद से केवल पांचसौ रुपए के शुल्क पर एक एकड़ से अधिक भूमि का डाटा उपलब्ध करवाया।

  • बाजारू मांग की सही पहचान और बदलते मौसम की सही जानकारी :

वेदर फोरकास्टिंग और सीधे मंडियों से जुड़े कई डिजिटल सॉफ्टवेयर की मदद से किसान भाइयों को उनके मोबाइल फोन पर ही वर्तमान में फसल की मांग के अनुसार बाजार में चल रही कीमत का पता लग जाता है।

इसके साथ ही भविष्य में स्टॉक की मात्रा का अंदाजा लगाकर किसान भाई फसल को कुछ समय तक स्टोरेज करके भी बेच सकता है।

मौसम से जुड़ी जानकारियां किसान भाइयों के खेत में होने वाले नुकसान को कम करने में सहयोग प्रदान करने के साथ ही शारीरिक श्रम में कमी और उर्वरकों के कम इस्तेमाल के लिए भी प्रेरित करती है।

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स्मार्ट कृषि प्रणाली में आने वाली चुनौतियां :

स्मार्ट कृषि की विकास प्रक्रिया में बाधित नकारात्मक प्रभाव को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है:-

  • बजटीय सहायता की कमी :

साल 2022 में कृषि क्षेत्र में नई तकनीकों के विकास और अनुसंधान कार्यों के लिए बहुत ही सीमित राशि उपलब्ध करवाई गई है।

बदलते समय के साथ सरकार को भी समझना होगा कि अब केवल डिजिटलीकरण और स्मार्ट कृषि की मदद से ही उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है।

  • लघु और सीमांत किसान जोत :

भारतीय कृषि में किसानों की लघु और सीमांत आकार की जोत को एक बड़ी समस्या के रूप में देखा जाता है।

छोटे और सीमांत जोत में 2 हेक्टेयर से कम क्षेत्र के खेत को शामिल किया जाता है।

वर्तमान में छोटे और सीमांत किसानों की संख्या 85 प्रतिशत से भी अधिक है, वहीं 10 हेक्टेयर से बड़ी खेत की जोत रखने वाले किसान केवल 0.5 प्रतिशत है।

किसानों के लिए स्मार्ट तकनीक से होने वाले आर्थिक लाभ को सीमित करने में जोत का आकार बहुत महत्वपूर्ण होता है।

  • कृषि क्षेत्र में स्टार्टअप कंपनियों का कम विकास :

टेलीकम्युनिकेशन और कंप्यूटर सेक्टर में बनने वाली नई स्टार्टअप कंपनियां की तुलना में कृषि क्षेत्र में काम करने वाली स्टार्टअप दो प्रतिशत से भी कम है।

अधिक जनसंख्या वाले देश में खाद्य संकट को सीमित करने के लिए कृषि क्षेत्र से जुड़ी नई तकनीकों की विकास को मध्य नजर रखते हुए स्टार्टअप कंपनी की को बढ़ाने के लिए सरकार को भी प्रोत्साहन देना चाहिए।

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विश्व खाद्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार साल 2030 तक भारत में खाद्य संकट बढ़ने की संभावनाएं 25% से अधिक हो जाएगी। स्मार्ट कृषि में आने वाली समस्याओं का बिग डाटा एनालिटिक्स और बैकवर्ड-फॉरवर्ड लिंकेज को बेहतर बना कर इंटरनेट ऑफ थिंग्स की मदद से समाधान किया जा सकता है। 

 आशा करते हैं हमारे किसान भाइयों को merikheti.com के द्वारा उपलब्ध करवाई गई स्मार्ट कृषि से जुड़ी जानकारी पसंद आई होगी।भविष्य में आप भी डिजिटल माध्यमों का सदुपयोग करते हुए बेहतर कृषि उत्पादन के लिए नई तकनीकों के बारे में जानकारी हासिल कर पाएंगे।